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Ram lakshaman parshuram samwad.

  

.Class 10 Hindi Kshitij Chapter 2 Summary- Ram Lakshman Parshuram Samvad Summary in Hindi

नाथ संभुधनु भंजनिहारा। होइहि केउ एक दास तुम्हारा॥आयेसु काह कहिअ किन मोही। सुनि रिसाइ बोले मुनि कोही॥सेवकु सो जो करै सेवकाई। अरिकरनी करि करिअ लराई॥राम लक्ष्मण परशुराम संवाद भावार्थ :- 

सुनहु राम जेहि सिवधनु तोरा। सहसबाहु सम सो रिपु मोरा॥सो बिलगाउ बिहाइ समाजा। न त मारे जैहहिं सब राजा॥सुनि मुनिबचन लखन मुसुकाने। बोले परसुधरहि अवमाने॥बहु धनुही तोरी लरिकाईं। कबहुँ न असि रिस किन्हि गोसाईँ॥येही धनु पर ममता केहि हेतू। सुनी रिसाइ कह भृगुकुलकेतू॥राम लक्ष्मण परशुराम संवाद भावार्थ :-

रे नृपबालक कालबस बोलत तोहि न सँभार्।धनुही सम त्रिपुरारिधनु बिदित सकल संसार॥राम लक्ष्मण परशुराम संवाद भावार्थ :-

लखन कहा हसि हमरे जाना। सुनहु देव सब धनुष समाना॥का छति लाभु जून धनु तोरें। देखा राम नयन के भोरें।।छुअत टूट रघुपतिहु न दोसू। मुनि बिनु काज करिअ कत रोसू॥राम लक्ष्मण परशुराम संवाद भावार्थ :-  

बोले चितै परसु की ओरा। रे सठ सुनेहि सुभाउ न मोरा॥बालकु बोलि बधौं नहि तोही। केवल मुनि जड़ जानहि मोही।।बाल ब्रह्म्चारी अति कोही। बिस्वबिदित क्षत्रियकुल द्रोही॥भुजबल भूमि भूप बिनु कीन्ही। बिपुल बार महिदेवन्ह दीन्ही॥सहसबाहुभुज छेदनिहारा। परसु बिलोकु महीपकुमारा॥राम लक्ष्मण परशुराम संवाद भावार्थ :- 

मैं बचपन से ही ब्रह्मचारी हूँ। सारा संसार मेरे क्रोध को अच्छी तरह से पहचानता है। मैं क्षत्रियों का सबसे बड़ा शत्रु हूँ। अपने बाजुओं के बल पर मैंने कई बार इस पृथ्वी से क्षत्रियों का सर्वनाश किया है और इस पृथ्वी को जीतकर ब्राह्मणों को दान में दिया है। इसलिए हे राजकुमार लक्ष्मण! मेरे फरसे को तुम ध्यान से देख लो, यही वह फरसा है, जिससे मैंने सहस्त्रबाहु का संहार किया था।

मातु पितहि जनि सोचबस करसि महीसकिसोर।गर्भन्ह के अर्भक दलन परसु मोर अति घोर॥राम लक्ष्मण परशुराम संवाद भावार्थ :-

BY-VIKASH KUMAR .

बिहसि लखनु बोले मृदु बानी। अहो मुनीसु महाभट मानी।।पुनि पुनि मोहि देखाव कुठारु। चहत उड़ावन फूँकि पहारू॥इहाँ कुम्हड़बतिया कोऊ नाहीं। जे तरजनी देखि मरि जाहीं॥राम लक्ष्मण परशुराम संवाद भावार्थ :-

देखि कुठारु सरासन बाना। मैं कछु कहा सहित अभिमाना॥भृगुसुत समुझि जनेउ बिलोकी। जो कछु कहहु सहौं रिस रोकी॥सुर महिसुर हरिजन अरु गाई। हमरे कुल इन्ह पर न सुराई॥बधें पापु अपकीरति हारें। मारतहू पा परिअ तुम्हारें।।कोटि कुलिस सम बचनु तुम्हारा। ब्यर्थ धरहु धनु बान कुठारा॥राम लक्ष्मण परशुराम संवाद भावार्थ :- 

वैसे भी हमारे कुल की यह परंपरा है कि हम देवता, ब्राह्मण, भक्त एवं गाय के ऊपर अपनी वीरता नहीं आजमाते। आप तो ब्राह्मण हैं और मैं आपका वध करूँ, तो पाप मुझे ही लगेगा। आप अगर मेरा वध भी कर देते हैं, तो मुझे आपके चरणों में झुकना पड़ेगा। यही हमारे कुल की मर्यादा है। फिर आगे लक्ष्मण कहते हैं कि आपके वचन ही किसी व्रज की भाँति कठोर हैं, तो फिर आप को इस कुल्हाड़े और धनुष की क्या ज़रूरत है

जो बिलोकि अनुचित कहेउँ छमहु महामुनि धीर।सुनि सरोष भृगुबंसमनि बोले गिरा गंभीर।राम लक्ष्मण परशुराम संवाद भावार्थ :-

कौसिक सुनहु मंद येहु बालकु। कुटिलु कालबस निज कुल घालकु॥भानुबंस राकेस कलंकू। निपट निरंकुसु अबुधु असंकू॥कालकवलु होइहि छन माहीं। कहौं पुकारि खोरि मोहि नाहीं॥तुम्ह हटकहु जौ चाहु उबारा। कहि प्रतापु बलु रोषु हमारा॥राम लक्ष्मण परशुराम संवाद भावार्थ :- 

लखन कहेउ मुनि सुजसु तुम्हारा। तुम्हहि अछत को बरनै पारा॥अपने मुहु तुम्ह आपनि करनी। बार अनेक भाँति बहु बरनी॥नहि संतोषु त पुनि कछु कहहू। जनि रिस रोकि दुसह दुख सहहू॥बीरब्रती तुम्ह धीर अछोभा। गारी देत न पावहु सोभा॥राम लक्ष्मण परशुराम संवाद भावार्थ :- 

सूर समर करनी करहिं कहि न जनावहिं आपु।विधमान रन पाइ रिपु कायर कथहिं प्रतापु॥राम लक्ष्मण परशुराम संवाद भावार्थ :-

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तुम्ह तौ कालु हाँक जनु लावा। बार बार मोहि लागि बोलावा॥सुनत लखन के बचन कठोरा। परसु सुधारि धरेउ कर घोरा॥अब जनि दै दोसु मोहि लोगू। कटुबादी बालकु बधजोगू॥बाल बिलोकि बहुत मैं बाँचा। अब येहु मरनिहार भा साँचा॥राम लक्ष्मण परशुराम संवाद भावार्थ :-

कौसिक कहा छमिअ अपराधू। बाल दोष गुन गनहिं न साधू॥खर कुठार मैं अकरुन कोही। आगे अपराधी गुरुद्रोही॥उतर देत छोड़ौं बिनु मारे। केवल कौसिक सील तुम्हारे॥न त येहि काटि कुठार कठोरे। गुरहि उरिन होतेउँ श्रम थोरे॥राम लक्ष्मण परशुराम संवाद भावार्थ :- 

मुझमें क्रोध कितना भरा हुआ है। मेरे सामने यह मेरे गुरु का अपमान किये जा रहा है और मेरे हाथों में फरसा होने के बावजूद भी मैंने अभी तक इसका वध नहीं किया है। अगर यह जीवित खड़ा है, तो सिर्फ तुम्हारे प्रेम और सदभाव के लिए। नहीं तो अभी तक मैं अपने फरसे से बिना किसी परिश्रम के इसे काटकर इसका वध कर देता और अपनी गुरु-दक्षिणा चुका देता।

गाधिसूनु कह हृदय हसि मुनिहि हरियरे सूझ।अयमय खाँड़ न ऊखमय अजहुँ न बूझ अबूझ॥राम लक्ष्मण परशुराम संवाद भावार्थ :- 

कहेउ लखन मुनि सीलु तुम्हारा। को नहि जान बिदित संसारा॥माता पितहि उरिन भये नीकें। गुररिनु रहा सोचु बड़ जी कें॥सो जनु हमरेहि माथें काढ़ा। दिन चलि गये ब्याज बड़ बाढ़ा॥अब आनिअ ब्यवहरिआ बोली। तुरत देउँ मैं थैली खोली॥राम लक्ष्मण परशुराम संवाद भावार्थ :- 

यह ठीक भी है, क्योंकि बहुत दिन हो चुके हैं, अब तक तो आपके ऊपर गुरु-ऋण का बहुत ब्याज चढ़ चुका होगा। तो फिर देर करने की ज़रूरत नहीं है, किसी हिसाब-किताब करने वाले को बुला लीजिए। मैं देर किए बिना अपनी थैली खोल कर सारी धन राशि चुका दूँगा।

सुनि कटु बचन कुठार सुधारा। हाय हाय सब सभा पुकारा॥भृगुबर परसु देखाबहु मोही। बिप्र बिचारि बचौं नृपद्रोही॥मिले न कबहूँ सुभट रन गाढ़े। द्विजदेवता घरहि के बाढ़े॥अनुचित कहि सबु लोगु पुकारे। रघुपति सयनहि लखनु नेवारे॥राम लक्ष्मण परशुराम संवाद भावार्थ :- 

ऐसा प्रतीत होता है, मानो आपका अभी तक युद्ध भूमि में किसी पराक्रमी से पाला नहीं पड़ा। इसलिए आप अपने आप को बहुत शूरवीर समझ रहे हैं। यह बात सुनकर दरबार में उपस्थित सारे लोग अनुचित-अनुचित कह कर पुकारने लगते हैं और श्री राम अपनी आँखों के इशारे से लक्ष्मण जी को चुप होने का इशारा करते हैं।

लखन उतर आहुति सरिस भृगुबरकोपु कृसानु।बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु॥राम लक्ष्मण परशुराम संवाद भावार्थ :-  

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